भूमि की ऊपरी सतह पर कृषि योग्य भूमि की 15-20 सेमी परत को soil कहते है। प्रतिवर्ष कुछ प्राकृतिक शक्तियो मूख्य रुप से जल तथा वायु द्वारा मृदा की ऊपरी सतह बहकर एक स्थान से दूसरे स्थान पर चले जाना soil erosion ( मृदा क्षरण ) कहलाता है।
"इस तरह वायु या जल द्वारा मृदा कणो का एक स्थान से दूसरे स्थान कटकर या बहकर दूसरे स्थान मे जमा होने को मृदा क्षरण कहते है"
Forms/Types of soil Erosion
( 1 ) भूवैज्ञानिय मृदा क्षरण ( Geological Soil Erosion )
वर्षा का जो पानी भूमि पर गिरता है , उसकी कुछ मात्रा भूमि के द्वारा शोषित कर ली जाती है व शेष फालतू पानी भूमि के ऊपर से बहता हुआ नीचे के धरातल में पहुंचता है । जब यह पानी भूमि के ऊपर बहता है , तो थोड़ी बहुत मात्रा में भूमि की ऊपरी सतह से मिट्टी की मात्रा अपने साथ बहाकर ले जाता है । इस प्रकार मिट्टी की जो मात्रा जल द्वारा बहाकर नष्ट की जाती है, उसे हम " Geological soil erosion " कहते हैं ।
( 2 ) मानवीय मृदा क्षरण ( Accelerated Soil Erosion )
जनसंख्या की वृद्धि के साथ - साथ मनुष्यों की आवश्यकताओं में बढ़ोत्तरी हुई है । अपनी आवश्यकताओं की पूर्ति के लिए मनुष्यों ने वनों व जंगलों को काटकर अथवा आग लगाकर साफ किया । वनस्पतिविहीन भूमि पर मानत ने खेती, विभिन्न उद्योग व सड़कों का निर्माण किया । इस प्रकार से मानव ने भूमि को वनस्पतिविहीन बनाया व इसका खेती से कुबन्ध किया । जिसके द्वारा भूमि का क्षरण होता आ रहा है । इस तरह के भूमि में क्षरण को जो मानव द्वारा किया जाता है " मानवीय मृदा क्षरण " कहते हैं ।
मृदा अपरदन की प्रक्रियां
जब वर्षा जल की बूंदें अत्यधिक ऊंचाई से मृदा सतह पर गिरती है तो वे महीन मृदा कणों को मृदा पिंड से अलग कर देती है| ये अलग हुए मृदा कण जल प्रवाह द्वारा फिसलते या लुढ़कते हुए झरनों, नालों या नदियों तक चले जाते हैं| अपरदन प्रक्रिया में निम्नलिखित चरण शामिल होते हैं:
मृदा कणों का ढीला होकर अलग होना (अपरदन)
मृदा कणों का विभिन्न साधनों द्वारा अभिगमन (स्थानान्तरण)
मृदा कणों का का जमाव (निपेक्षण)
भूमि के कटाव की किस्में ( kinds of soil Erosion )
इस प्रकार भूमि के क्षरण या अपरदन को बढ़ावा देने वाली शक्तिर्यों के आधार पर भूमि के कटाव को दो किस्मों के अन्दर विभाजित किया जा सकता है -
( 1 ) जलीय कटाव ( Water Erosion ) - इस प्रकार के कटाव में मिट्टी पानी के टकराने के कारण अपने स्थान से अलग होती है व फिर उस स्थान से बहाकर दूसरे स्थान पर ले गयी आती है । इस प्रकार के कटाव को हम " water Erosion " कहते हैं ।
( 2 ) वायुवीय कटाव ( Wind Erosion ) - मिट्टी को अपने स्थान से अलग करके , दूसरे स्थान पर ले जाने वाली दूसरी शक्ति हवा है । हवा के द्वारा इस प्रकार भूमि का जो अपरदन होता है उसे हम " Wind Erosion " कहते हैं ।
Couses of soil erosion
1. Deforestation
2. Overgraging
3. Adaptation of inproper farming
Sratices
4. Increasing flood proneness
5. Depletion of organic content
6. Contineusl monoculture farming
7. Inpro water management
8. Shifting cultivation
1. Deforestation- जंगल की अत्यधिक कटाई करने से मृदा क्षरण की दर बढ़ जाती है क्योकि पौधो की जडे मृदा को बाधकर रखती है अतः जंगल की कटाई होने से soil erosion rate बढ़ जाती है।
2. Overgraging- घास की सघन जडे मृदा को बांधकर रखती है घास भूमि का अत्यधिक मात्रा मे चराई करने से घास समाप्त हो जाती है जिसमे भूमि क्षरण बढ़ जाता है।
3. Adaptation of inproper farming Sratices - अनुपयुक्त कृषि पद्धतियो द्वारा भी मृदा अपरदन प्रकिया मे वृद्धि होती है। गहरे ढाल मे दोषपूर्ण जुताई की विधियां तथा नयी भूमि मे भू-परिष्करण का गलत प्रयोग मृदा अपरदन को प्रभावित करते है।
4. Increasing flood proneness- अगर मिट्टी की infiltration rate कम होगा तो उसका flood rate बढेगा जिसमे क्षरण बढेगा।
5. Depletion of organic content- मृदा मे organic matter की पर्याप्त मात्रा होने से मृदा की जल धारण क्षमता बढ़ती है। जिसके कारण वर्षा की जल का बहुत अधिक मात्रा मे धारण कर लिया जाता है।
6. Contineusl monoculture farming- एक ही भूमि पर लगातार एक ही प्रकार फसल उगाने से मृदा की भौतिक संरचना खराब होती है।
7. Inproper water management- सिचाई व वर्षा के जल का inproper तरीके से management होने से भी भूमि क्षरण बढता है।
8. Meaning and earth work- भारत भू-सम्पदा का धनी है अतः धातुओ,कोयला व अन्य कार्यो का खनन निरन्तर होता रहता है। जिससे लाखों हे. जमीन बन्जर हो गये है अौर इसका मलना आगे चलकर तरह-तरह की कठिनाईया पैदा करती है।
<meta name="propeller" content="0668864f7bb850e951087e80a74c2a04">
Water Erosion
वनस्पति रहित भूमि पर जब वर्षा की बूंदे पडती है तो वे मृदा कणो को एक-दुसरे अलग कर देती है,ये कण बिखर कर पानी के बहाव के साथ एक स्थान से दूसरे स्थान पर पहुचते है। जल द्वारा मृदा के कटने और बहने की इस क्रिया को ही जल क्षरण कहते है।
इस प्रकार के क्षरण मे मिट्टी पानी के टकराने के कारण अपने स्थान से अलग होती है व फिर उस स्थान से बहाकर पानी द्वारा दूसरे स्थान पर ले जाया जाती है। इस प्रकार के क्षरण को हम जल क्षरण कहते है।
जल क्षरण के प्रकार ( Types of water erosion )
1. बून्द क्षरण ( Splash erosion ) - यह क्षरण की प्रारंभिक अवस्था है । इसमें वषों की तेज गति से गिरती बूंदों के आघात से मृदा कण अपने स्थान से छिटककर चारों और बिखर जाते हैं ।
2. परत क्षण ( Sheet croslon ) - बूदों द्वारा मृदा कणों के बिखरने के पश्चात् वर्षा का जल पूरे खेत से मिट्टी की एक पतली परत को समान रूप से बहा ले जाता है । इसे परत क्षरण कहते हैं ।
3. क्षुद नालिका क्षरण ( Rill erosion ) - वर्षा होने पर जल खेत के ढाल की ओर नन्ही - नन्हीं धाराओ रूप में बनें उगता है । ये धाराये से मृदा कटाव करती है और उगलियों में समान पहली नलिका बना देती है ।
4. अवनालिका क्षरण ( Gully erosion ) - जब क्षुद्र नलिका क्षरण की और कोई विशेश ध्यान नहीं दिया जाता है और भूमि का ढाल अधिक होता है , तो पानी का बहाव एवं कटाव बढ़ा रहता है तब ये नालिकाये अधिक गहरी एवं चौड़ी होती रहती हैं व ऊपरी सतह को कटने के बाद अधोभूमि को भी काटकर गहरा कर देती हैं । यह कटाव धारा के विपरीत दिशा में बढ़ता रहता है । इन भूमियों में कृषि कार्य करना कठिन होता है ।
5. भूस्खलन क्षरण ( Land slides or slip erosion ) - इस प्रकार का क्षरण प्रायः पहाड़ों पर देखने को मिलता है । जब पहाड़ों पर प्रचण्ड वर्षा होती हैं तब चट्टानं नमी से पूर्ण संतुष्ट हो जाती है तो खड़े ढालों पर ढीली चट्टाने एवं भूखण्ड स्खलित होकर नीचे लुढ़क जाती है । इसे भूस्खलन क्षरण भी कहते हैं ।
6. सरिता - तट क्षरण ( Stream bank erosion ) - सरिता तटों की निकटवर्ती वानस्पतिक आवरण अनियंत्रित चराई आदि द्वारा नष्ट कर दिये जाने अथवा तटों के अत्यन्त समीप तक भूपरिष्करण क्रियायें करते रहने के कारण तटों का क्षरण तीव्रतर हो जाता है । इसके अतिरिक्त जल का वेग, बहाव की दशा बहाव का बिसर्पी होना, मिटटी का गठन आदि सरितातट क्षरण की दर और मात्रा दोनों को प्रभावित करते हैं ।
7. सरिता- तट क्षरण ( Stream Bank erosion ) - इस प्रकार का क्षरण समुद्र के तटीया क्षेत्रों मे पाया जाता है। इसे पुलिन क्षरण भी कहते है सागर की औसत निम्नतल रेखा से लेकर स्थल की ओर स्थायी वनस्यतियो रेखा मे फैले क्षेत्र को Beach कहते है यह दो प्रकार के होते है- 1. Gravel beach 2. Sand beach
8. पीठीका क्षरण ( Pedestal Erosion ) - ऐसी भूमियां जिनमें अपस्फुरण क्षरण अधिक होता है तो कटाव के समय कुछ ऐसे क्षेत्र दिखाई पड़ते हैं जिनके ऊपर स्पलैश धारण का प्रभाव नहीं होता । प्रायः ऐसे क्षेत्र वनस्पतियों की जडों पत्थरों या अन्य किसी पदार्थ से आच्छादित होते हैं । इन क्षेत्रों को पृष्ठाश पीठीका तथा इस प्रकार के भूमि कटाव को ‘ पीठीका क्षरण ' कहते हैं ।
9 ) हिमानी शरण ( Glacial Erosion ) - पर्वतीय क्षेत्रों में जहां पर हिमपात अधिक होता है इस प्रकार का मृदा कटाव पाया जाता है । इन क्षेत्रों में बड़े - बड़े हिमखण्ड ढलान की ओर गुरूत्वाकर्षण शक्ति के कारण लुढकते हैं और अपने साथ चट्टानों को तोड़ते हुए निचले क्षेत्रों में पहुंच जाते हैं । हिंमखण्ड का आकार , भार व गति विशेष रुप से मृदा कटाव को प्रभावित करते हैं ।
Disadvantage of water erosion
इससे निम्न हानियां हैं :
1 . वर्षा का जल बहकर नष्ट हो जाने से वह फसल उत्पादन के काम में नहीं आता है ।
2 . पानी के साथ प्रायः भूमि की ऊपरी सतह तथा कभी - कभी नीचे की मिट्टी भी बहकर नष्ट हो जाती है
3 . उपजाऊ मिट्टी के कटने - बहने से भूमि की उर्वरा शक्ति बहुत क्षीण हो जाती है ।
4 . जब भूमि अधिक गहरे तक कटती है तो नीचे की अनुपजाऊ भूमि पानी के साथ बहकर समतल और उपजाऊ खेतों पर इकट्ठा हो जाती है । इस तरह उपजाऊ खेत बिना कटे - बहे ही कम उपजाऊ बन जाते हैं ।
5 . खेतों में अवनलिकायें बनने से खेत छोटे - छोटे तथा बेडौल टुकड़ों में बंट जाते हैं । जिससे कोई भी कृषि कार्य करना कठिन होता है ।
6 . पानी के साथ बहकर मिट्टी , नदी , नालों , तालाबों की तली में बैठकर उनकी क्षमता को घटा देती है जिससे समीपवर्ती क्षेत्रों में बाढ़ आ जाती है और जन - धन की भीषण हानि होती है ।
7. भूमि कटाव के फलस्वरूप कृषि उत्पादन कम होता है तथा सड़क एवं रेल मार्गों के क्षतिग्रस्त होने के कारण मनुष्य की समृद्धि तथा देश के विकास पर विपरीत प्रभाव पड़ता है ।
जल क्षरण को प्रभावित करने वाले कारक ( Factors affecting water erosion )
जल द्वारा भूमि के कटाव को प्रभावित करने वाले कारकों को निम्नलिखित समीकरण द्वारा प्रदर्शित किया जा सकता है -
Where , E = Erosion
F = Factors
C = Climate
T = Topography
V = Vegetation
S = Soil
H = Human Factors
1.जलवायु ( Climate )- वर्षा की भीषणता अवधि और आवृति का भूमि क्षरण की गति तथा परिणाम पर भारी प्रभाव पड़ता है।
2. तल ( Topography ) - समतल भूमि पर ढालू भूमि की अपेक्षा कम कटाव होता है । ढाल का अंश और लम्बाई अपधावन तथा मृदा - क्षरण दोनों को प्रभावित करते हैं ।
3. मृदा गुण ( Soil characteristics ) - बलुई भूमि में कणों का बिखराव अत्यधिक होता है । लेकिन स्थानांतरण कम होता है जबकि मटियार भूमि में कण का आपस में अधिक मजबूती से चिपके रहते हैं लेकिन कणों का स्थानांतरण अत्यधिक होता है ।
4. वनस्पति ( Negetation ) - वनस्पति से आच्छादित भूमि जलवायु एवं तल रूप आदि के प्रभावों को कम कर देती है । वनस्पति वर्षा की बूंदों को भूमि कणों से टकराने से पहले ही रोक देती है । अतः कणों का बिखराव नहीं होने पाता ।
5. मानवीय कारक ( Human factors ) - मनुष्य ईधन , लकड़ी और खेती योग्य भूमि प्राप्त करने के लिए अन्धा-धुन्ध वनों को काटता रहा है । इसी प्रकार चारागाहों में अत्यधिक चराई करने से भूमि वनस्पति विहीन हो जाती है ।
जलीय क्षरण रोकने के सिद्धांत ( Principale of controlling water erosion )
जलीय क्षरण रोकने के मुख्य दो सिद्धांत हैं
1. अपधावन की मात्रा को कम करना ।
2. पृष्ठीय जल स्रवण को बढ़ाना ।
1.अपधावन ( Run off ) - वर्षा के पानी की वह मात्रा जो मृदा पर पड़ने के बाद भूमि द्वारा सोखने से बच जाती है भूमि के धरातल पर बहकर चलती है ( Run off ) कहलाती हैं ।
a ) वर्षा ( Rain fall ) - वर्षा की मात्रा , प्रचंडता , अवधि ।
b ) तल रूप ( Topography ) - ढाल , ढाल की लम्बाई व स्वरूप ।
c ) वनस्पति ( Vegetation ) - वनस्पति की किस्म , सघनता , जड़ें आदि ।
d ) भूमि की दशाएँ ( Soil conditions ) - नमी की मात्रा , कंकड़ , पर्त , भूमि की किस्म आदि ।
e ) अन्य कारक - वनों का काटना , अत्यधिक चराई आदि ।
2. पृष्ठीय जल स्रवण ( infilteration ) - भूमि की पृष्ठी सतह द्वारा सोखने की क्रिया को पुष्ठीय जल स्रवण कहते हैं । किसी निश्चित समय में जल कि दर से भूमि में प्रवेश कर रहा है , पृष्ठीय जल स्रवण क्षमता ( Water in tel , capacity or infilteration capacity ) कहलाती है ।
पानी द्वारा कटाव से होने वाली हानियाँ ( Losses Caused by Water Erosion )
पानी द्वारा कटाव से भूमि को दो प्रकार से हानि पहुँचती है : एक जहाँ से मिट्टी कटकर बह जाती है वहां पर भूमि की उत्पादकता एवं उर्वरता ( Productivity and Fertility ) की हानि तथा दूसरे जहाँ पर परिवरित मिटटी ( Transported Soil ) जाकर बिछ जाती है , वहाँ पर अवसादन ( Sedimentation ) और बाढ़ द्वारा हानि ।
पानी द्वारा कटाव से होने वाली हानियों को , मोटे तौर पर , इस प्रकार सूचीबद्ध कर सकते हैं -
( a ) भूमि के संरचनात्मक झुण्डों का विखण्डन झुण्डो का रिक्त-स्थानो मे जाम हो जाने से भूमि की पारगम्यता ( Permeability ) में कमी ।
( b ) मिट्टी के उर्वरता - वाहक कणों ( Fertility Bearing Particles ) , जैसे कलिलीय मृत्तिका ( Colloidal Clay ) , पोषक तत्वों ( Nutrients ) , जैसे पोटाश , कैल्सियम , नाइट्रोजन , फास्फोरस तथा जैव - पदार्थ ( Organic Matter ) , मृदा - जीवाणुओं ( Soil Microbes ) , फसलों के बीजों , नवजात पोधों ( Seedlings and Sampling ) आदि का बह जाना ।
( c ) खड्ड कटाव ( Gully Erosion ) द्वारा भूमि का क्षत - विक्षत हो जाना ।
( d ) वनस्पतियों के कट - बह जाने से वन्य - जीवन ( Wild Life ) के शरण - स्थलो ( Shelter Places ) का विनाश।
( 5 ) जलाशयों ( Reservoirs ) में कीचड़ जमा हो जाने से मछली - पालन में बाधा ।
( 6 ) अवसादन ( Sedimentation ) के फलस्वरूप जलमार्गों ( Water ways ) और जलाशयों ( Reservoirs ) का उथला ( Shallow ) हो जाना , और इस प्रकार , उनकी जल - वाहन या जल भण्डारण क्षमता ( Water Carrying or Water Storage Capacity ) में कमी हो जाना ।
( 7 ) सड़कों एवं रेलमार्गों आदि के क्षतिग्रस्त हो जाने से आवागमन में बाधा ।
पानी द्वारा कटाव से होने वाली मृदा - हानि का आकलन ( Estimation of Soil Loss Caused by Water Erosion )
पहले अध्याय में ही बताया जा चुका है कि भूमि - कटाव ( Soil Erosion ) कटाव करने वाले कारकों ( Erosive Factors ) की क्षरणकारिता ( Erosivity ) और भूमि की क्षरणीयता ( Erodibility ) की परस्पर क्रियाओं का परिणाम है । क्षरणकारिता ( Erosivity ) और क्षरणीयता ( Erodibility ) के प्रमुख पहलुओं ( Prinicipal Aspels ) को लेकर संयुक्त राज्य अमेरिका के कृषि विभाग ( United State Department of Agriculture ) , या संक्षेप में , USDA ने पानी द्वारा कटाव से होने वाली मृदा - हानि ( Soil Loss ) के आकलन के लिए एक समीकरण विकसित किया है , जिसे ' सार्वभौमिक मृदा हानि समीकरण ' ( Universal Soil Loss Equation ) कहते हैं , जो इस प्रकार है :
A = ( RKLSCP )
जिसमें,
A = वार्षिक मृदा हानि ( Annual Soil Loss )
R = बौछारी जलवृष्टि का क्षरणकारिता सूचकांक ( Erosivity Index of Rainfall ) : यह एक संख्या है , जो वर्षा की प्रचण्डता ( Rainfall Intensity ) और उसकी गतिज ऊर्जा ( Kinetic Energy ) पर निर्भर है ।
K = भूमि की क्षरणीयता का कारक ( Soil Erodibility Factor ) : यह एक संख्या है जिसका मान ( Value ) द्वी गयी मानक भूमि - दशाओं ( Given Standard Soil Conditions ) में प्रति इकाई क्षरणकारिता ( Per Unit Erosivity ) द्वारा होने वाली मृदा - हानि ( Soil Loss ) पर निर्भर है ।
L = लम्बाई कारक ( Length Factor ) : एक संख्या , जो मृदा - हानि की मात्रा ( Amount of Soil Loss ) और एक दी गयी मानक ढाल लम्बाई ( Given Standard Slope Length ) वाले क्षेत्र से प्राप्त मृदा - हानि की मात्रा का अनुपात ( Ratio ) सूचित करती है ।
S = ढाल कारक ( Slope Factor ) : एक संख्या, जो मृदा - हानि ( Soil Loss ) की मात्रा और एक मानक प्रतिशत ढाल ( Standard Slope Percent ) वाले क्षेत्र से प्राप्त मृदा हानि ( Soil Loss ) की मात्रा का अनुपात ( Ratio ) है ।
C = फसल - प्रबन्ध कारक ( Crop Management Factor ) : एक संख्या , जो मृदा हानि ( Soil Loss ) की मात्रा और एक मानक उपचार वाले क्षेत्र ( Standard Treatment Area ) अर्थात् वनस्पतिविहीन परती भूमि ( Fallow Land Without vegetation ) से प्राप्त मृदाहानि ( Soil Loss ) की मात्रा का अनुपात ( Ratio ) है ।
P = संरक्षण प्रणाली कारक ( Conservation Practices Factor ) : एक संख्या , जो मृदाहानि ( Soil Loss ) की मात्रा और एक संरक्षणविहीन क्षेत्र ( Conservationless Area ) - अर्थात् तीव्रतम ढाल के अनुकूल जुताई ( Ploughing Along Acute Slope ) वाले क्षेत्र से प्राप्त मृदा हानि ( Soil Loss ) की मात्रा का अनुपात ( Ratio ) है ।
यहाँ पर उल्लेखनीय है कि इस समीकरण ( Equation ) के विकास के लिए अधिकतर अनुसंधान - कन्द्रों पर S और L के मान ( Values ) क्रमशः 9 % और 22. 6 मीटर रखे गये थे । वह सिर्फ एक ऐतिहासिक संयोग ( Historical Coincidence ) भर था , इसका कोई गणितीय आधार ( Mathematical Base ) नहीं था । अतः इनके मान ( Values ) भिन्न - भिन्न क्षेत्रीय दशाओं के लिए भिन्न - भिन्न रखे जा सकते हैं ।
उपर्युक्त समीकरण में प्रयुक्त R , K , और S ऐसे कारक ( Factors ) हैं , जिन्हें नियंत्रित नहीं किया जा सकता , जबकि L , C , और P कारको भूमि एवं फसल प्रबन्ध ( Soil and Crop Management ) तथा संरक्षण प्रणालियों ( Conservation Practices ) के जरिये नियंत्रित करके कटाव को भूमि - निर्माण की दर ( Soil Formation Rate ) , यानी स्वीकार्य सीमा ( Permissible Limit ) के भीतर नियंत्रित किया जा सकता है ।
सार्वभौमिक मृदा - हानि समीकरण ( Universal Soil Loss Equation ) के द्वारा किसी भी दिये गये जलसमेट क्षेत्र ( Catchment Area ) में विभिन्न प्रकार की कृषि एवं संरक्षण प्रणालियों का चुनाव करके , कटाव नियन्त्रण ( Erosion Control ) में उनके प्रभाव को जाँचा - परखा , तथा यहाँ तक कि प्रत्याशित मृदाहानि ( Expected Soil Loss ) का पूर्वानुमान ( Prediction ) भी किया जा सकता है । साथ ही , इसे समीकरण की सहायता से कटाव की भिन्न - भिन्न दशाओं के लिए समुचित कृषि एवं संरक्षण प्रणालियों का अनुमोदन ( Recommendation ) भी किया जा सकता है ।
जलीय क्षरण रोकने के मुख्य दो सिद्धांत हैं
1. अपधावन की मात्रा को कम करना ।
2. पृष्ठीय जल स्रवण को बढ़ाना ।
1.अपधावन ( Run off ) - वर्षा के पानी की वह मात्रा जो मृदा पर पड़ने के बाद भूमि द्वारा सोखने से बच जाती है भूमि के धरातल पर बहकर चलती है ( Run off ) कहलाती हैं ।
a ) वर्षा ( Rain fall ) - वर्षा की मात्रा , प्रचंडता , अवधि ।
b ) तल रूप ( Topography ) - ढाल , ढाल की लम्बाई व स्वरूप ।
c ) वनस्पति ( Vegetation ) - वनस्पति की किस्म , सघनता , जड़ें आदि ।
d ) भूमि की दशाएँ ( Soil conditions ) - नमी की मात्रा , कंकड़ , पर्त , भूमि की किस्म आदि ।
e ) अन्य कारक - वनों का काटना , अत्यधिक चराई आदि ।
2. पृष्ठीय जल स्रवण ( infilteration ) - भूमि की पृष्ठी सतह द्वारा सोखने की क्रिया को पुष्ठीय जल स्रवण कहते हैं । किसी निश्चित समय में जल कि दर से भूमि में प्रवेश कर रहा है , पृष्ठीय जल स्रवण क्षमता ( Water in tel , capacity or infilteration capacity ) कहलाती है ।
पानी द्वारा कटाव से होने वाली हानियाँ ( Losses Caused by Water Erosion )
पानी द्वारा कटाव से भूमि को दो प्रकार से हानि पहुँचती है : एक जहाँ से मिट्टी कटकर बह जाती है वहां पर भूमि की उत्पादकता एवं उर्वरता ( Productivity and Fertility ) की हानि तथा दूसरे जहाँ पर परिवरित मिटटी ( Transported Soil ) जाकर बिछ जाती है , वहाँ पर अवसादन ( Sedimentation ) और बाढ़ द्वारा हानि ।
पानी द्वारा कटाव से होने वाली हानियों को , मोटे तौर पर , इस प्रकार सूचीबद्ध कर सकते हैं -
( a ) भूमि के संरचनात्मक झुण्डों का विखण्डन झुण्डो का रिक्त-स्थानो मे जाम हो जाने से भूमि की पारगम्यता ( Permeability ) में कमी ।
( b ) मिट्टी के उर्वरता - वाहक कणों ( Fertility Bearing Particles ) , जैसे कलिलीय मृत्तिका ( Colloidal Clay ) , पोषक तत्वों ( Nutrients ) , जैसे पोटाश , कैल्सियम , नाइट्रोजन , फास्फोरस तथा जैव - पदार्थ ( Organic Matter ) , मृदा - जीवाणुओं ( Soil Microbes ) , फसलों के बीजों , नवजात पोधों ( Seedlings and Sampling ) आदि का बह जाना ।
( c ) खड्ड कटाव ( Gully Erosion ) द्वारा भूमि का क्षत - विक्षत हो जाना ।
( d ) वनस्पतियों के कट - बह जाने से वन्य - जीवन ( Wild Life ) के शरण - स्थलो ( Shelter Places ) का विनाश।
( 5 ) जलाशयों ( Reservoirs ) में कीचड़ जमा हो जाने से मछली - पालन में बाधा ।
( 6 ) अवसादन ( Sedimentation ) के फलस्वरूप जलमार्गों ( Water ways ) और जलाशयों ( Reservoirs ) का उथला ( Shallow ) हो जाना , और इस प्रकार , उनकी जल - वाहन या जल भण्डारण क्षमता ( Water Carrying or Water Storage Capacity ) में कमी हो जाना ।
( 7 ) सड़कों एवं रेलमार्गों आदि के क्षतिग्रस्त हो जाने से आवागमन में बाधा ।
पानी द्वारा कटाव से होने वाली मृदा - हानि का आकलन ( Estimation of Soil Loss Caused by Water Erosion )
पहले अध्याय में ही बताया जा चुका है कि भूमि - कटाव ( Soil Erosion ) कटाव करने वाले कारकों ( Erosive Factors ) की क्षरणकारिता ( Erosivity ) और भूमि की क्षरणीयता ( Erodibility ) की परस्पर क्रियाओं का परिणाम है । क्षरणकारिता ( Erosivity ) और क्षरणीयता ( Erodibility ) के प्रमुख पहलुओं ( Prinicipal Aspels ) को लेकर संयुक्त राज्य अमेरिका के कृषि विभाग ( United State Department of Agriculture ) , या संक्षेप में , USDA ने पानी द्वारा कटाव से होने वाली मृदा - हानि ( Soil Loss ) के आकलन के लिए एक समीकरण विकसित किया है , जिसे ' सार्वभौमिक मृदा हानि समीकरण ' ( Universal Soil Loss Equation ) कहते हैं , जो इस प्रकार है :
A = ( RKLSCP )
जिसमें,
A = वार्षिक मृदा हानि ( Annual Soil Loss )
R = बौछारी जलवृष्टि का क्षरणकारिता सूचकांक ( Erosivity Index of Rainfall ) : यह एक संख्या है , जो वर्षा की प्रचण्डता ( Rainfall Intensity ) और उसकी गतिज ऊर्जा ( Kinetic Energy ) पर निर्भर है ।
K = भूमि की क्षरणीयता का कारक ( Soil Erodibility Factor ) : यह एक संख्या है जिसका मान ( Value ) द्वी गयी मानक भूमि - दशाओं ( Given Standard Soil Conditions ) में प्रति इकाई क्षरणकारिता ( Per Unit Erosivity ) द्वारा होने वाली मृदा - हानि ( Soil Loss ) पर निर्भर है ।
L = लम्बाई कारक ( Length Factor ) : एक संख्या , जो मृदा - हानि की मात्रा ( Amount of Soil Loss ) और एक दी गयी मानक ढाल लम्बाई ( Given Standard Slope Length ) वाले क्षेत्र से प्राप्त मृदा - हानि की मात्रा का अनुपात ( Ratio ) सूचित करती है ।
S = ढाल कारक ( Slope Factor ) : एक संख्या, जो मृदा - हानि ( Soil Loss ) की मात्रा और एक मानक प्रतिशत ढाल ( Standard Slope Percent ) वाले क्षेत्र से प्राप्त मृदा हानि ( Soil Loss ) की मात्रा का अनुपात ( Ratio ) है ।
C = फसल - प्रबन्ध कारक ( Crop Management Factor ) : एक संख्या , जो मृदा हानि ( Soil Loss ) की मात्रा और एक मानक उपचार वाले क्षेत्र ( Standard Treatment Area ) अर्थात् वनस्पतिविहीन परती भूमि ( Fallow Land Without vegetation ) से प्राप्त मृदाहानि ( Soil Loss ) की मात्रा का अनुपात ( Ratio ) है ।
P = संरक्षण प्रणाली कारक ( Conservation Practices Factor ) : एक संख्या , जो मृदाहानि ( Soil Loss ) की मात्रा और एक संरक्षणविहीन क्षेत्र ( Conservationless Area ) - अर्थात् तीव्रतम ढाल के अनुकूल जुताई ( Ploughing Along Acute Slope ) वाले क्षेत्र से प्राप्त मृदा हानि ( Soil Loss ) की मात्रा का अनुपात ( Ratio ) है ।
यहाँ पर उल्लेखनीय है कि इस समीकरण ( Equation ) के विकास के लिए अधिकतर अनुसंधान - कन्द्रों पर S और L के मान ( Values ) क्रमशः 9 % और 22. 6 मीटर रखे गये थे । वह सिर्फ एक ऐतिहासिक संयोग ( Historical Coincidence ) भर था , इसका कोई गणितीय आधार ( Mathematical Base ) नहीं था । अतः इनके मान ( Values ) भिन्न - भिन्न क्षेत्रीय दशाओं के लिए भिन्न - भिन्न रखे जा सकते हैं ।
उपर्युक्त समीकरण में प्रयुक्त R , K , और S ऐसे कारक ( Factors ) हैं , जिन्हें नियंत्रित नहीं किया जा सकता , जबकि L , C , और P कारको भूमि एवं फसल प्रबन्ध ( Soil and Crop Management ) तथा संरक्षण प्रणालियों ( Conservation Practices ) के जरिये नियंत्रित करके कटाव को भूमि - निर्माण की दर ( Soil Formation Rate ) , यानी स्वीकार्य सीमा ( Permissible Limit ) के भीतर नियंत्रित किया जा सकता है ।
सार्वभौमिक मृदा - हानि समीकरण ( Universal Soil Loss Equation ) के द्वारा किसी भी दिये गये जलसमेट क्षेत्र ( Catchment Area ) में विभिन्न प्रकार की कृषि एवं संरक्षण प्रणालियों का चुनाव करके , कटाव नियन्त्रण ( Erosion Control ) में उनके प्रभाव को जाँचा - परखा , तथा यहाँ तक कि प्रत्याशित मृदाहानि ( Expected Soil Loss ) का पूर्वानुमान ( Prediction ) भी किया जा सकता है । साथ ही , इसे समीकरण की सहायता से कटाव की भिन्न - भिन्न दशाओं के लिए समुचित कृषि एवं संरक्षण प्रणालियों का अनुमोदन ( Recommendation ) भी किया जा सकता है ।
------------Thank you for visit------------ EDUCATION TECK